Saturday, February 3, 2018

परिवार


समय के इस चौराहे पर  वो रिश्ते बदलने लगे हैं अब जब सुबह उठने के साथ हम अपनों का चेहरा नहीं मोबाईल की स्क्रीन देखने लगे हैं जब हमें अपनों की ख़ुशी से ज्यादा फेसबुक का हाल जानने में दिलचस्पी  रहती है एक ही छत के निचे  अपने परिवार में किसी से बात करने के लिए,  हम इन बेजान मशीनों पर निर्भर हो गए है  ये बातें सभी समझते हैं, सभी जानते हैं फिर भी  सब खामोश हैं,  शायद कहीं मन ही मन में ये मान चुके हैं सब ठीक है, सब समझदार हैं, सब समझ लेंगे लेकिन शायद ऐसा  नहीं हैं  धीरे धीरे सब दूर होते जाते हैं जीवन के अंतिम समय तक हमारे पास पैसे तो जुड़ते जाते हैं लेकिन उनको खुशियों के साथ खर्च करने के लिए लोगों की भीड़ कम होती जाती है शायद हम ये नहीं समझ पाते की  हैं  इन रिश्तों से बाहर निकलने के साथ ही जीवन में अंधकार है, जहां जीने का कोई मकसद ही नहीं बचता  जबकि सच्चा प्रेम दिलों में हमेशा एक सा बसंत बनाए रखता है
          ज़िन्दगी की इस बेतुकी सी दौड़ में जो कभी फुर्सत मिले तो पीछे पलट कर देखिये वो जो हमारी ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा ज़रूरी है वो कहीं पीछे छूट गया है वो प्यार जिसके बिना जीना बेमानी है  वो प्यार धीमे धीमे घुट रहा है हमारे ध्यान से कहीं दूर, और जब इन भटके हुए रास्तों पर दौड़ती हमारी ज़िन्दगी पलट कर देखती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है पैसों के पीछे भागते, इंसान बनने की कोशिश ज़रूर कीजिये और थाम लीजिये उन हाथों को जो अकेले हैं, तन्हा हैं हमारे प्यार के बिना  हैं








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